भारतीय चित्रकला
भारतीय चित्रकला का इतिहास शिला चित्रों से प्रारंभ होकर कंप्यूटर चित्र पर टिकता है। पाषाण काल से ही मानव ने गुफा चित्र प्रारंभ कर दिया था इसके अतिरिक्त जोगीमारा गुफा तथा एलिफेंटा गुफा आदि के चित्रों के अध्ययन से भारतीय चित्रकला की विविधता का बोध होता है।
भारतीय चित्रकला की क्षेत्रीय शैलियां गुजराती शैली, जैन शैली अपभ्रंश शैली पटना शैली राजस्थानी शैली मुगल शैली तथा पहाड़ी शैली ने जहां भारतीय चित्रकला के इतिहास को समन्वय किया है वही लोग चित्रकला के योगदान को भी कम नहीं कहा जा सकता है। भारतीय चित्रकारों ने अपनी कला को अपने देश के बाहर प्रदर्शित करके जो विश्वव्यापी ख्याति प्राप्त की है उनमें से प्रमुख चित्रकार हैं राजा रवि वर्मा, नंदलाल बोस, अविनिन्द्र नाथ ठाकुर ,आसित कुमार हल्दार आदि।
भारतीय चित्रकला के रूप
भारतीय चित्रकला के लिखित रूप दृष्टिगोचर होते हैं-
भित्ति चित्र
ऐसे चित्र जो विभिन्न विधियों पर चित्रित हैं जैसे अजंता गुफा बाघ गुफा बादामी गुफा आदि उन्हें भित्ति चित्र कहते हैं।
चित्रपट
ऐसे चित्र जो वस्त्र या चरम वस्तु पर चित्रित किए जाते हैं उन्हें चित्रपट कहते हैं।
चित्र फलक
ऐसे चित्रण पाषाण खंड धातु अथवा कास्ट पर चित्रित किए जाते हैं।
लघु चित्रकारी
ऐसे चित्र पुस्तकों के आवरण एवं अनंत स्टोर कागज अथवा वस्त्रों पर चित्रित होते हैं।
भारतीय चित्रकला का इतिहास भी अन्य ललित कलाओं के समान ही प्राचीनतम है। भारतीय चित्रकला की पृष्ठभूमि आदि दैविक एवं आध्यात्मिक रही भारतीय चित्रकला के आदर्श हैं-भाव प्रधान कोमल तथा सत्यम शिवम सुंदरम की भावना से अभिभूत और इन्हीं आधारों पर अनेकानेक चित्र शैलीया प्रचलित हुई ।
यह भी पढ़ें: भारतीय प्रागैतिहासिक कला केंद्र
भारतीय चित्रकला की विशेषताएं
भारतीय कलाओं की कुछ ऐसी महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं जो कि भारतीय कला को पाश्चात्य देशों की कलाओं से अलग कर देती हैं यह कुछ इस प्रकार हैं-
धार्मिकता
भारतीय कलाओं की उत्पत्ति धर्म के साथ हुई है और धर्म ने कला के माध्यम से ही अपनी धार्मिक मान्यताओं को जनता तक पहुंचाया है और चित्रकला को धार्मिक महत्व का कारण अर्थ धर्म काम व मोक्ष का साधन माना गया है।
कल्पना
भारतीय चित्रकला कल्पना के आधार पर ही विकसित हुई है कल्पना का सर्वोत्तम उदाहरण नटराज के रूप में विकसित हुआ है।
आकृतियां तथा मुद्राएं
भारतीय कलाओं में आकृतियां तथा मुद्राओं को आदर्श रूप प्रदान करने के लिए चमत्कार पूर्ण तथा अलंकारिक रूप प्रदान किए गए हैं। भारतीय चित्रकला तथा मूर्तिकला में भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों की आकृतियों मुद्राओं तथा भंगी भाव का विशेष महत्व है। अजंता शैली की आकृतियां अपनी भावपूर्ण मुद्राओं के लिए प्रसिद्ध है।
सामान्य पात्र
सामान्य पात्र का अर्थ है पद के अनुसार पात्रों की आकृति तथा आकृति के अनुपातों का निर्माण करना राजा रंक देवता राक्षस साधु स्त्री शिशु युवक आदि के रूप में अंग प्रत्यंग के अनुपातों को भारतीय कला में निश्चित किया गया है।
अलंकारिकता
कलाकार आदर्श ग्रुप के लिए अलंकारों का प्रयोग अपनी रचनाओं में करता है जैसे कमल के समान नैन कदली स्तंभों के समान जंघाएं शुक चंचु के समान नासिका आदि।
रेखा तथा रंग
भारतीय चित्रकला रेखा प्रधान है चित्र की आकृतियां प्रकृति एवं वातावरण सबको निश्चित सीमा रेखाओं में अंकित किया गया इन आकृतियों में सपाट रंग का प्रयोग किया गया है।
"इस प्रकार भारतीय चित्रकला की एक सामान्य जानकारी आप सभी को इस आर्टिकल के माध्यम से मिली है।"