सिंधु घाटी की सभ्यता ( हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की कलाकृतियां)

सिंधु घाटी की सभ्यता ( हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की कलाकृतियां)

 
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सिंधु घाटी की सभ्यता ( हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की कलाकृतियां)

सिंधु घाटी की सभ्यता का परिचय हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से उपलब्ध हुई सामग्री एवं अवशेषों से प्राप्त होता है सबसे पहले कनिंघम ने 18 सो 78 ईस्वी में हड़प्पा के टीलों की खोज की 1922 ईस्वी में राखल दास बंधोपाध्याय ने सिंधु के लरकाना जिले में मोहनजोदड़ो तथा बाद में सर्जन मार्शल ने वर्षों तक यहां खोज कार्य किया इस प्रकार इस सभ्यता के अनेक केंद्र प्रकाश में आए।


सिंधु घाटी की कला

सिंधु सभ्यता की कलात्मक सामग्री हमें उन वस्तुओं के रूप में उपलब्ध हैं जो मोहनजोदड़ो, हड़प्पा ,लोथल ,नील ,छूकर, चन्हूदरो आदि स्थानों में खुदाई से प्राप्त हुई इन स्थानों में चित्रकला मूर्तिकला स्थापत्य कला के जो अवशेष मिले हैं उससे उस युग की महान कला का परिचय मिलता है दैनिक व्यवहार में प्रयुक्त होने वाले बर्तनों पर अलंकृत चित्रकारी को देखकर सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय कला कितनी समुन्नत थी और उसका कितना व्यापक प्रचार हुआ था।

कनिंघम ने 1878 ईस्वी में हड़प्पा टीले का पता लगाकर वहीं से प्राप्त कुछ मुहावरों के चित्र भी प्रकाशित किए ।सन 1921 में दयाराम साहनी और 1922 में राखालदास बंदोपाध्याय द्वारा मोहनजोदड़ो में जो कार्य कराया गया उससे सिंधु घाटी की ताम्र युगीन सभ्यता का अस्तित्व सामने आया इसके बाद मार्शल एवं माधव स्वरूप ने लगातार कई वर्षों तक खुदाई करके इस बात को सिद्ध कर दिया कि अतीत कालीन भारत में वास्तु कला मूर्तिकला एवं चित्रकला के प्रति व्यापक रुचि रही है।

मूर्तिकला

मोहनजोदड़ो और हड़प्पा वास्तुकला के श्रेष्ठ नमूने हैं परिवहन मार्ग व गलियां समकोण पर एक दूसरे से मिलती थी जिसके बाहरी और पक्की ईंट लगाई गई थी । हड़प्पा का मुख्य राजमार्ग 35 फीट चौड़ा था सुरक्षा व धूल आदि से बचाव के लिए मकानों के सदर दरवाजे गलियों की ओर बनाए जाते थे।

पक्की ईंटों के फर्श होते थे ।प्रायः पानी कौन से प्राप्त किया जाता था। खराब पानी के निकास के लिए जमीन के अंदर नाली व चौबच्चे बनाए जाते थे ।प्रत्येक घर में चार पांच कमरों के साथ आंगन व स्नानागार बनाया जाता था मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार कई कक्षाओं का भवन था ।जिसके भीतर लंबा चौड़ा और गहरा जलाशय था। नीचे जाने के लिए चौड़ी सीढ़ियां थी तथा दो पंक्तियों में छोटे-छोटे 8 स्नान कच्छ बने थे।


मूर्ति शिल्प

मोहनजोदड़ो हड़प्पा से प्राप्त मूर्तियों को तीन भागों में बांटा गया

पाषाण मूर्तियां

मिट्टी की मूर्तियों की तुलना में पत्थर की मूर्तियां कम प्राप्त हुई 11 मूर्तियां मोहनजोदड़ो तथा दो मूर्तियां हड़प्पा से प्राप्त हुए हैं इन मूर्तियों का निर्माण अलाबास्टर चूना पत्थर बलुआ पत्थर आदि से हुआ है। इन मूर्तियों में मोहनजोदड़ो की पुरुष आवक्ष की मूर्ति विशेष उल्लेखनीय है। 19 सेंटीमीटर की यह पत्थर की मूर्ति एक उत्तरीय ओढ़े हुए हैं जिस पर फूलों की सजा है उसके माथे तथा बाजू पर फीतेे से बना हुआ एक गोल आभूषण हैं तथा गर्दन मोटी है । थे

दूसरी मूर्ति सलेटी रंग के पत्थर की नारी नृत्य मुद्रा में है। इसका दाएं हाथ कमर था बाया हाथ जंघा पर दिखाया गया शरीर का गठन सुंदर एवं स्वाभाविक है नर्तकी की मूर्ति को कुछ विद्वान पुरुष मूर्ति मानते हैं किंतु वासुदेव शरण अग्रवाल ने इससे नारी मूर्ति माना है।

सिंधु घाटी के अवशेषों से लगभग 1200 से अधिक मुद्राएं या मोहरे प्राप्त हुई है पत्थर को काटकर इन्हें बनाया जाता था इनमें बनी हुई मूर्तियां छोटी हैं किंतु अनुपात में अत्यंत प्रभावशाली है।

धातु की मूर्तियां

मोहनजोदड़ो से प्राप्त कांस्य की मूर्तियां मूर्तिकला का एक सुंदर उदाहरण है।यह नग्न हैं तथा इनके हाथ पैर लंबे हैं। हाथ में एक पात्र है तथा यह भुजा चूड़ियों से भरी हुई है इस मूर्ति में कलाकार ने संतुलन गति तथा नारी की स्वाभाविक मुद्रा के अंकन में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है ।इस विधि से पहले मूर्तियां मोम से बनाई जाती थी फिर उस पर गीली चिकनी मिट्टी की परते चढ़ा कर सुखा लिया जाता था।

मिट्टी की मूर्तियां

सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों से मिट्टी की बनी हुई सैकड़ों मूर्तियां प्राप्त हुई है इन मूर्तियों का निर्माण हाथ से होता है मूर्तियों में मानव मूर्तियां पशु मूर्तियां तथा बच्चों के खिलौने प्राप्त हुए हैं। नारी आकृतियों में मातृ देवी की मूर्तियां हैं जिनका निर्माण धार्मिक पूजा के लिए किया जाता है तथा पशुओं की मूर्तियों में हाथी बंदर पशुओं को बच्चों के खिलौने भी माना जा सकता है।


मुद्राएं या मोहरें

सिंधु घाटी में 1200 से अधिक पत्थर की बनाई गई मोहरें प्राप्त हुई है जो करीब 1 इंच मोटी है इनके पीछे अंगूठी नुमा उठान लगी रहती है जिससे यह धागे में बांधकर प्रयोग में लाई जा सके ।मोहरे वर्गाकार ढोलनाकार व गोलाकार में प्राप्त हुई हैं और उनमें वृषभ और हरिण का संयुक्त रुप देखने को मिलता है एक दूसरी मोहर पर वृक्ष की दो शाखाओं के मध्य एक आकृति खड़ी है ।मोहरों पर पशुपति हाथी बैल आदि की भी आकृतियां बनी है।

सिंधु घाटी में कुछ ताम्र मुद्राएं भी मिली है जो मांस में 1.2 * 0.5 से 1.5 * 0.1 है पशुओं की आकृति बनी हुई है। यहां प्राप्त आभूषणों पर जेमिति अलंकरण बने हैं।

मिट्टी के बर्तनों पर चित्रकला

हड़प्पा सभ्यता के नागरिक इतने कला प्रेमी थे कि उन्होंने प्रयोग में लाने वाले पात्रों तथा मृतक के साथ जमीन में गाड़ने वाले पात्रों पर विविध प्रकाउ का आलेखन कार्य किया।


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